भारत में लंबे समय तक कृषि अर्थनीति का मुख्य आधार होने के साथ रोजगार का प्रमुख आयाम हुआ करता था । मगर स्वाधीनता के उपरांत इसमें बदलाव आया और सरकारों ने देश की अर्थनीति में कृषि की भूमिका को कम करते हुए इसे शिल्प आधारित अर्थव्यवस्था की और धकेलना प्रारंभ किया । फिर 1980 में विदेशी कंपनियों को भारत में पूंजी निवेश की छूट मिलते ही भारत की पूरी अर्थनीति शिल्प आधारित हो गई जिसमें कृषि क्षेत्र का बहुत कम योगदान बाकी रह गया । फिर भारत की शिक्षा व्यवस्था भी खेती किसानी को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करती है , जिसमें दिखाया जाता है की केवल अशिक्षित लोग ही किसानी करते हैं । इसलिए भारत में युवा कृषि से अपनी दूरी बढ़ाने लगे । भारत की अर्थव्यवस्था में जब कृषि क्षेत्र की भूमिका कम हो गई और शिक्षित युवा इसमें अपनी भागीदारी कम करने लगे तो इस क्षेत्र में पूंजी निवेश भी कम होता गया तथा आधुनिक तकनीक और ज्ञान कौशल में भी कमी आने लगी । नए यंत्रों के आविष्कार भी कम हो गए। जिस कारण कृषि क्षेत्र में उत्पादकता कम होने के साथ फसलों के रखरखाव के सुविधा में भी बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन आज जब 45 साल बाद देश में जब फिर से रोजगार के मुद्दे पर एक नए सिरे से बहस चलने लगी है तब लोगों को और खासकर युवाओं को यह एहसास होने लगा है की कृषि एक ऐसा माध्यम है जिससे जुड़कर वे अच्छा रोजगार कर सकते हैं।
कृषि क्षेत्र में अभी जो इजराइलि तकनीक आ रही है इससे एक छोटे से जमीन के टुकड़े से भी अच्छी आमदनी की जा सकती है । जो युवाओं के लिए एक स्थाई रोजगार का विषय हो सकता है । इसी के साथ तकनीकी ज्ञान, कौशल का आविष्कार से तथा कृषि से जुड़े यंत्रों के निर्माण और इसके व्यापार से भी अनेक युवाओं को रोजगार मिलेगा ।भारत में वर्तमान के समय में ऑर्गेनिक फार्मिंग से भी युवा जुड़ने की चाहत रखते हैं क्योंकि ऑर्गेनिक फार्मिंग के माध्यम से जो फसल उगाया जा रहा है उसका एक बड़ा बाजार मध्य पूर्व देशों में है ।राजस्थान के कोटा जिले के 2 आई आई टी ग्रेजुएट युवाओं ने लाखों की नौकरी छोड़ कर नई तकनीकी से खेती करना चुना, जिसकी सहायता से वो लगभग 80% तक पानी की बचत भी करते हैं और अच्छा रोजगार कर रहे हैं ।
अगर कृषि क्षेत्र में सही ढंग से कदम उठाए जाएं तो भारत को पुन: श्रेष्ठ कृषिप्रधान देश बनाया जा सकता है,जहां एक और तकनीकी, औद्योगिकी के क्षेत्र में भारत शिखर पर हैं वहीं आज आवश्यकता है कि नवनीकरण से कृषि क्षेत्र में भी सुधार किया जाए।कृषि का तात्पर्य केवल खेती करना ही नहीं है बल्कि ये क्षेत्र अपने आप में बहुत वृहद है, जैसे कि पशुपालन, मत्स्यपालन, फलोत्पादन इत्यादि।इसलिए आज के परिस्थितियों को देखकर युवाओं को फिर से अपने पूर्वजों के श्रेष्ठतम कर्म कृषि को अपने रोजगार का जरिया के रूप में चुनना चाहिए जिससे देश और समाज दोनों का भला हो ।
डी शुभम, संपादक